एक गाँव में राधा और मोहन नाम के भाई-बहन रहते थे। उनका आपसी प्रेम बहुत गहरा था। राधा अपने छोटे भाई मोहन की हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ख्याल रखती थी, और मोहन भी अपनी बहन का बहुत आदर करता था।
एक गाँव में राधा और मोहन नाम के भाई-बहन रहते थे। उनका आपसी प्रेम बहुत गहरा था। राधा अपने छोटे भाई मोहन की हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ख्याल रखती थी, और मोहन भी अपनी बहन का बहुत आदर करता था।
एक गाँव में राधा और मोहन नाम के भाई-बहन रहते थे। उनका आपसी प्रेम बहुत गहरा था। राधा अपने छोटे भाई मोहन की हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ख्याल रखती थी, और मोहन भी अपनी बहन का बहुत आदर करता था।
एक गाँव में राधा और मोहन नाम के भाई-बहन रहते थे। उनका आपसी प्रेम बहुत गहरा था। राधा अपने छोटे भाई मोहन की हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ख्याल रखती थी, और मोहन भी अपनी बहन का बहुत आदर करता था।
मेंढक ने दर्द से कराहते हुए पूछा, "तुमने ऐसा क्यों किया? अब हम दोनों डूब जाएंगे।" बिच्छू ने निराशा से जवाब दिया, "मैं अपने स्वभाव से मजबूर हूँ।" दोनों धीरे-धीरे डूबने लगे। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कुछ लोगों का स्वभाव ऐसा होता है कि वे अपने स्वार्थ और बुरी आदतों से बाहर नहीं आ पाते। हमें दूसरों के स्वभाव को समझकर ही उनसे व्यवहार करना चाहिए। अंधविश्वास और अति विश्वास से बचकर, अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए।
एक दिन, बिच्छू को तालाब के दूसरे किनारे जाना था, लेकिन वह तैर नहीं सकता था। उसने मेंढक से मदद मांगी और कहा, "मेंढक भाई, मुझे तालाब के उस पार जाना है, लेकिन मैं तैर नहीं सकता। क्या तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर उस पार ले चलोगे?
एक दिन, बिच्छू को तालाब के दूसरे किनारे जाना था, लेकिन वह तैर नहीं सकता था। उसने मेंढक से मदद मांगी और कहा, "मेंढक भाई, मुझे तालाब के उस पार जाना है, लेकिन मैं तैर नहीं सकता। क्या तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर उस पार ले चलोगे?
एक दिन, बिच्छू को तालाब के दूसरे किनारे जाना था, लेकिन वह तैर नहीं सकता था। उसने मेंढक से मदद मांगी और कहा, "मेंढक भाई, मुझे तालाब के उस पार जाना है, लेकिन मैं तैर नहीं सकता। क्या तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर उस पार ले चलोगे?
एक दिन, बिच्छू को तालाब के दूसरे किनारे जाना था, लेकिन वह तैर नहीं सकता था। उसने मेंढक से मदद मांगी और कहा, "मेंढक भाई, मुझे तालाब के उस पार जाना है, लेकिन मैं तैर नहीं सकता। क्या तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर उस पार ले चलोगे?
एक दिन, बिच्छू को तालाब के दूसरे किनारे जाना था, लेकिन वह तैर नहीं सकता था। उसने मेंढक से मदद मांगी और कहा, "मेंढक भाई, मुझे तालाब के उस पार जाना है, लेकिन मैं तैर नहीं सकता। क्या तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर उस पार ले चलोगे?
एक बार की बात है, एक घने जंगल में एक छोटा सा तालाब था। उस तालाब में एक मेंढक और एक बिच्छू रहते थे। दोनों के स्वभाव एक-दूसरे से बिलकुल अलग थे। मेंढक शांत और दयालु था, जबकि बिच्छू स्वभाव से क्रूर और धोखेबाज था।
एक बार की बात है, एक घने जंगल में एक छोटा सा तालाब था। उस तालाब में एक मेंढक और एक बिच्छू रहते थे। दोनों के स्वभाव एक-दूसरे से बिलकुल अलग थे। मेंढक शांत और दयालु था, जबकि बिच्छू स्वभाव से क्रूर और धोखेबाज था।
एक बार की बात है, एक घने जंगल में एक छोटा सा तालाब था। उस तालाब में एक मेंढक और एक बिच्छू रहते थे। दोनों के स्वभाव एक-दूसरे से बिलकुल अलग थे। मेंढक शांत और दयालु था, जबकि बिच्छू स्वभाव से क्रूर और धोखेबाज था।
एक बार की बात है, एक घने जंगल में एक छोटा सा तालाब था। उस तालाब में एक मेंढक और एक बिच्छू रहते थे। दोनों के स्वभाव एक-दूसरे से बिलकुल अलग थे। मेंढक शांत और दयालु था, जबकि बिच्छू स्वभाव से क्रूर और धोखेबाज था।
पास बहुत थोड़ी सी जमीन थी, और वह बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का पालन-पोषण कर पाता था। एक दिन उसे एक अनोखी मुर्गी मिली जो रोज एक सोने का अंडा देती थी। किसान बहुत खुश हुआ और उसने सोने के अंडे बेचकर अपनी गरीबी से छुटकारा पा लिया। उसकी स्थिति दिन-ब-दिन सुधरने लगी, और वह अमीर हो गया।
पास बहुत थोड़ी सी जमीन थी, और वह बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का पालन-पोषण कर पाता था। एक दिन उसे एक अनोखी मुर्गी मिली जो रोज एक सोने का अंडा देती थी। किसान बहुत खुश हुआ और उसने सोने के अंडे बेचकर अपनी गरीबी से छुटकारा पा लिया। उसकी स्थिति दिन-ब-दिन सुधरने लगी, और वह अमीर हो गया।
कबूतर को जाल से निकलने का अवसर प्राप्त हो चुका था. वह झटपट जाल से निकला और उड़ गया. इस तरह चींटी ने कबूतर के द्वारा किये गये उपकार का फ़ल चुकाया. सीख कर भला, हो भला. दूसरों पर किया गया उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता. उसका प्रतिफल कभी न कभी अवश्य प्राप्त होता है. इसलिए सदा निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना चाहिए.
कबूतर को जाल से निकलने का अवसर प्राप्त हो चुका था. वह झटपट जाल से निकला और उड़ गया. इस तरह चींटी ने कबूतर के द्वारा किये गये उपकार का फ़ल चुकाया. सीख कर भला, हो भला. दूसरों पर किया गया उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता. उसका प्रतिफल कभी न कभी अवश्य प्राप्त होता है. इसलिए सदा निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना चाहिए.
कबूतर को जाल से निकलने का अवसर प्राप्त हो चुका था. वह झटपट जाल से निकला और उड़ गया. इस तरह चींटी ने कबूतर के द्वारा किये गये उपकार का फ़ल चुकाया. सीख कर भला, हो भला. दूसरों पर किया गया उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता. उसका प्रतिफल कभी न कभी अवश्य प्राप्त होता है. इसलिए सदा निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना चाहिए.
जब चींटी की दृष्टि जाल में फंसे कबूतर पर पड़ी, तो उसे वह दिन स्मरण हो आया, जब कबूतर ने उसके प्राणों की रक्षा की थी. चींटी तुरंत बहेलिये के पास पहुँची और उसके पैर पर ज़ोर-ज़ोर से काटने लगी. बहेलिया दर्द से छटपटाने लगा. जाल पर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और जाल जमीन पर जा गिरा.
जब चींटी की दृष्टि जाल में फंसे कबूतर पर पड़ी, तो उसे वह दिन स्मरण हो आया, जब कबूतर ने उसके प्राणों की रक्षा की थी. चींटी तुरंत बहेलिये के पास पहुँची और उसके पैर पर ज़ोर-ज़ोर से काटने लगी. बहेलिया दर्द से छटपटाने लगा. जाल पर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और जाल जमीन पर जा गिरा.
जब चींटी की दृष्टि जाल में फंसे कबूतर पर पड़ी, तो उसे वह दिन स्मरण हो आया, जब कबूतर ने उसके प्राणों की रक्षा की थी. चींटी तुरंत बहेलिये के पास पहुँची और उसके पैर पर ज़ोर-ज़ोर से काटने लगी. बहेलिया दर्द से छटपटाने लगा. जाल पर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और जाल जमीन पर जा गिरा.
इस घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन कबूतर बहेलिये के द्वारा बिछाये जाल में फंस गया. उसने वहाँ से निकलने के लिए बहुत पंख फड़फड़ाये, बहुत ज़ोर लगाया, लेकिन जाल से निकलने में सफ़ल न हो सका. बहेलिये ने जाल उठाया और अपने घर की ओर जाने लगा. कबूतर निःसहाय सा जाल के भीतर कैद था.
इस घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन कबूतर बहेलिये के द्वारा बिछाये जाल में फंस गया. उसने वहाँ से निकलने के लिए बहुत पंख फड़फड़ाये, बहुत ज़ोर लगाया, लेकिन जाल से निकलने में सफ़ल न हो सका. बहेलिये ने जाल उठाया और अपने घर की ओर जाने लगा. कबूतर निःसहाय सा जाल के भीतर कैद था.
इस घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन कबूतर बहेलिये के द्वारा बिछाये जाल में फंस गया. उसने वहाँ से निकलने के लिए बहुत पंख फड़फड़ाये, बहुत ज़ोर लगाया, लेकिन जाल से निकलने में सफ़ल न हो सका. बहेलिये ने जाल उठाया और अपने घर की ओर जाने लगा. कबूतर निःसहाय सा जाल के भीतर कैद था.
इस घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन कबूतर बहेलिये के द्वारा बिछाये जाल में फंस गया. उसने वहाँ से निकलने के लिए बहुत पंख फड़फड़ाये, बहुत ज़ोर लगाया, लेकिन जाल से निकलने में सफ़ल न हो सका. बहेलिये ने जाल उठाया और अपने घर की ओर जाने लगा. कबूतर निःसहाय सा जाल के भीतर कैद था.
इस घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन कबूतर बहेलिये के द्वारा बिछाये जाल में फंस गया. उसने वहाँ से निकलने के लिए बहुत पंख फड़फड़ाये, बहुत ज़ोर लगाया, लेकिन जाल से निकलने में सफ़ल न हो सका. बहेलिये ने जाल उठाया और अपने घर की ओर जाने लगा. कबूतर निःसहाय सा जाल के भीतर कैद था.
पत्ते से साथ बहते हुए चींटी किनारे पर आ गई और कूदकर सूखी भूमि पर पहुँच गई. कबूतर के निःस्वार्थ भाव से की गई सहायता के कारण चींटी की जान बच पाई थी. वह मन ही मन उसका धन्यवाद करने लगी.
पत्ते से साथ बहते हुए चींटी किनारे पर आ गई और कूदकर सूखी भूमि पर पहुँच गई. कबूतर के निःस्वार्थ भाव से की गई सहायता के कारण चींटी की जान बच पाई थी. वह मन ही मन उसका धन्यवाद करने लगी.
पत्ते से साथ बहते हुए चींटी किनारे पर आ गई और कूदकर सूखी भूमि पर पहुँच गई. कबूतर के निःस्वार्थ भाव से की गई सहायता के कारण चींटी की जान बच पाई थी. वह मन ही मन उसका धन्यवाद करने लगी.
नदी के पानी में गिरते ही वह तेज धार में बहने लगी. उसे अपनी मृत्यु सामने दिखाई देने लगी. तभी कहीं से एक पत्ता उसके सामने आकर गिरा. किसी तरह वह उस पत्ते पर चढ़ गई. वह पत्ता नदी किनारे स्थित एक पेड़ पर बैठे कबूतर ने फेंका था, जिसने चींटी को पानी में गिरते हुए देख लिया था और उसके प्राण बचाना चाहता था.
नदी के पानी में गिरते ही वह तेज धार में बहने लगी. उसे अपनी मृत्यु सामने दिखाई देने लगी. तभी कहीं से एक पत्ता उसके सामने आकर गिरा. किसी तरह वह उस पत्ते पर चढ़ गई. वह पत्ता नदी किनारे स्थित एक पेड़ पर बैठे कबूतर ने फेंका था, जिसने चींटी को पानी में गिरते हुए देख लिया था और उसके प्राण बचाना चाहता था.
नदी के पानी में गिरते ही वह तेज धार में बहने लगी. उसे अपनी मृत्यु सामने दिखाई देने लगी. तभी कहीं से एक पत्ता उसके सामने आकर गिरा. किसी तरह वह उस पत्ते पर चढ़ गई. वह पत्ता नदी किनारे स्थित एक पेड़ पर बैठे कबूतर ने फेंका था, जिसने चींटी को पानी में गिरते हुए देख लिया था और उसके प्राण बचाना चाहता था.
वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी. इसलिए किनारे पड़े एक पत्थर पर चढ़कर पानी पीने का प्रयास करने लगी. लेकिन इस प्रयास में वह अपना संतुलन खो बैठी और नदी में गिर पड़ी.
वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी. इसलिए किनारे पड़े एक पत्थर पर चढ़कर पानी पीने का प्रयास करने लगी. लेकिन इस प्रयास में वह अपना संतुलन खो बैठी और नदी में गिर पड़ी.