दोस्तों की सच्ची मित्रता एक बार की बात है, दो दोस्त थे—राहुल और मोहन। वे दोनों गहरे जंगल में यात्रा कर रहे थे। चलते-चलते उन्हें एक भालू नजर आया। भालू को देखकर वे बहुत डर गए, क्योंकि भालू उनकी ओर तेजी से बढ़ रहा था।
दोस्तों की सच्ची मित्रता एक बार की बात है, दो दोस्त थे—राहुल और मोहन। वे दोनों गहरे जंगल में यात्रा कर रहे थे। चलते-चलते उन्हें एक भालू नजर आया। भालू को देखकर वे बहुत डर गए, क्योंकि भालू उनकी ओर तेजी से बढ़ रहा था।
दोस्तों की सच्ची मित्रता एक बार की बात है, दो दोस्त थे—राहुल और मोहन। वे दोनों गहरे जंगल में यात्रा कर रहे थे। चलते-चलते उन्हें एक भालू नजर आया। भालू को देखकर वे बहुत डर गए, क्योंकि भालू उनकी ओर तेजी से बढ़ रहा था।
पहला मेंढक, जो हार मान चुका था, अब बहुत पछताया। उसने सोचा, "अगर मैंने भी कोशिश जारी रखी होती, तो मैं भी बाहर आ सकता था।"
पहला मेंढक, जो हार मान चुका था, अब बहुत पछताया। उसने सोचा, "अगर मैंने भी कोशिश जारी रखी होती, तो मैं भी बाहर आ सकता था।"
पहला मेंढक, जो हार मान चुका था, अब बहुत पछताया। उसने सोचा, "अगर मैंने भी कोशिश जारी रखी होती, तो मैं भी बाहर आ सकता था।"
पहला मेंढक, जो हार मान चुका था, अब बहुत पछताया। उसने सोचा, "अगर मैंने भी कोशिश जारी रखी होती, तो मैं भी बाहर आ सकता था।"
पहला मेंढक, जो हार मान चुका था, अब बहुत पछताया। उसने सोचा, "अगर मैंने भी कोशिश जारी रखी होती, तो मैं भी बाहर आ सकता था।"
पहला मेंढक, जो हार मान चुका था, अब बहुत पछताया। उसने सोचा, "अगर मैंने भी कोशिश जारी रखी होती, तो मैं भी बाहर आ सकता था।"
दूसरे मेंढक ने हार नहीं मानी। वह लगातार उछलता रहा, बार-बार कोशिश करता रहा। आखिरकार, उसकी मेहनत रंग लाई और वह कुएँ से बाहर निकल आया।
दूसरे मेंढक ने हार नहीं मानी। वह लगातार उछलता रहा, बार-बार कोशिश करता रहा। आखिरकार, उसकी मेहनत रंग लाई और वह कुएँ से बाहर निकल आया।
दूसरे मेंढक ने हार नहीं मानी। वह लगातार उछलता रहा, बार-बार कोशिश करता रहा। आखिरकार, उसकी मेहनत रंग लाई और वह कुएँ से बाहर निकल आया।
दूसरे मेंढक ने हार नहीं मानी। वह लगातार उछलता रहा, बार-बार कोशिश करता रहा। आखिरकार, उसकी मेहनत रंग लाई और वह कुएँ से बाहर निकल आया।
दूसरे मेंढक ने हार नहीं मानी। वह लगातार उछलता रहा, बार-बार कोशिश करता रहा। आखिरकार, उसकी मेहनत रंग लाई और वह कुएँ से बाहर निकल आया।
दूसरे मेंढक ने हार नहीं मानी। वह लगातार उछलता रहा, बार-बार कोशिश करता रहा। आखिरकार, उसकी मेहनत रंग लाई और वह कुएँ से बाहर निकल आया।
कई बार कोशिश करने के बाद, उनमें से एक मेंढक निराश हो गया। उसने सोचा, "अब हम इस गहरे कुएँ से कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे।" वह वहीं हार मानकर बैठ गया।
कई बार कोशिश करने के बाद, उनमें से एक मेंढक निराश हो गया। उसने सोचा, "अब हम इस गहरे कुएँ से कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे।" वह वहीं हार मानकर बैठ गया।
कई बार कोशिश करने के बाद, उनमें से एक मेंढक निराश हो गया। उसने सोचा, "अब हम इस गहरे कुएँ से कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे।" वह वहीं हार मानकर बैठ गया।
मेंढक की कहानी एक बार की बात है, एक गाँव में दो मेंढक रहते थे। एक दिन, वे दोनों एक गहरे कुएँ के पास खेल रहे थे। खेलते-खेलते दोनों मेंढक कुएँ में गिर गए। कुएँ की गहराई देखकर दोनों में डर गए। उन्होंने कोशिश की, पर वे बाहर नहीं निकल पा रहे थे।
मेंढक की कहानी एक बार की बात है, एक गाँव में दो मेंढक रहते थे। एक दिन, वे दोनों एक गहरे कुएँ के पास खेल रहे थे। खेलते-खेलते दोनों मेंढक कुएँ में गिर गए। कुएँ की गहराई देखकर दोनों में डर गए। उन्होंने कोशिश की, पर वे बाहर नहीं निकल पा रहे थे।
मेंढक की कहानी एक बार की बात है, एक गाँव में दो मेंढक रहते थे। एक दिन, वे दोनों एक गहरे कुएँ के पास खेल रहे थे। खेलते-खेलते दोनों मेंढक कुएँ में गिर गए। कुएँ की गहराई देखकर दोनों में डर गए। उन्होंने कोशिश की, पर वे बाहर नहीं निकल पा रहे थे।
लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सारस से माफी मांगी। सारस ने उसे माफ कर दिया, लेकिन लोमड़ी ने सीखा कि दूसरों के साथ चालाकी करने से हमें खुद ही नुकसान हो सकता
लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सारस से माफी मांगी। सारस ने उसे माफ कर दिया, लेकिन लोमड़ी ने सीखा कि दूसरों के साथ चालाकी करने से हमें खुद ही नुकसान हो सकता
एक घने जंगल में एक चतुर खरगोश और चालाक लोमड़ी रहते थे। लोमड़ी बहुत शातिर थी और हमेशा खरगोश को पकड़ने की योजना बनाती रहती थी। लेकिन खरगोश हमेशा अपनी चतुराई से बच निकलता था।
एक घने जंगल में एक चतुर खरगोश और चालाक लोमड़ी रहते थे। लोमड़ी बहुत शातिर थी और हमेशा खरगोश को पकड़ने की योजना बनाती रहती थी। लेकिन खरगोश हमेशा अपनी चतुराई से बच निकलता था।
एक घने जंगल में एक चतुर खरगोश और चालाक लोमड़ी रहते थे। लोमड़ी बहुत शातिर थी और हमेशा खरगोश को पकड़ने की योजना बनाती रहती थी। लेकिन खरगोश हमेशा अपनी चतुराई से बच निकलता था।
सारस खुशी-खुशी लोमड़ी के घर आया। जब खाना परोसा गया, तो लोमड़ी ने सारस के सामने एक चौड़ी और सपाट प्लेट में सूप रखा। सूप बहुत पतला था, और सारस अपनी लंबी चोंच से उसे पी नहीं पा रहा था। लेकिन लोमड़ी ने मज़े से अपनी जीभ से सारा सूप पी लिया। सारस समझ गया कि लोमड़ी उसे बेवकूफ बना रही है, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा
सारस खुशी-खुशी लोमड़ी के घर आया। जब खाना परोसा गया, तो लोमड़ी ने सारस के सामने एक चौड़ी और सपाट प्लेट में सूप रखा। सूप बहुत पतला था, और सारस अपनी लंबी चोंच से उसे पी नहीं पा रहा था। लेकिन लोमड़ी ने मज़े से अपनी जीभ से सारा सूप पी लिया। सारस समझ गया कि लोमड़ी उसे बेवकूफ बना रही है, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा
लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सारस से माफी मांगी। सारस ने उसे माफ कर दिया, लेकिन लोमड़ी ने सीखा कि दूसरों के साथ चालाकी करने से हमें खुद ही नुकसान हो सकता है।
लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सारस से माफी मांगी। सारस ने उसे माफ कर दिया, लेकिन लोमड़ी ने सीखा कि दूसरों के साथ चालाकी करने से हमें खुद ही नुकसान हो सकता है।
लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सारस से माफी मांगी। सारस ने उसे माफ कर दिया, लेकिन लोमड़ी ने सीखा कि दूसरों के साथ चालाकी करने से हमें खुद ही नुकसान हो सकता है।
सारस ने भी लोमड़ी को अगले दिन अपने घर खाने पर बुलाया। लोमड़ी खुशी-खुशी गई। सारस ने उसके लिए भी सूप बनाया, लेकिन इस बार सूप लंबी और पतली गर्दन वाली सुराही में परोसा गया। सारस ने अपनी लंबी चोंच से आसानी से सूप पी लिया, लेकिन लोमड़ी कुछ भी नहीं कर पाई।
सारस ने भी लोमड़ी को अगले दिन अपने घर खाने पर बुलाया। लोमड़ी खुशी-खुशी गई। सारस ने उसके लिए भी सूप बनाया, लेकिन इस बार सूप लंबी और पतली गर्दन वाली सुराही में परोसा गया। सारस ने अपनी लंबी चोंच से आसानी से सूप पी लिया, लेकिन लोमड़ी कुछ भी नहीं कर पाई।
सारस ने भी लोमड़ी को अगले दिन अपने घर खाने पर बुलाया। लोमड़ी खुशी-खुशी गई। सारस ने उसके लिए भी सूप बनाया, लेकिन इस बार सूप लंबी और पतली गर्दन वाली सुराही में परोसा गया। सारस ने अपनी लंबी चोंच से आसानी से सूप पी लिया, लेकिन लोमड़ी कुछ भी नहीं कर पाई।
बुद्धिमान सारस** एक बार की बात है, एक घने जंगल में एक चालाक
बुद्धिमान सारस** एक बार की बात है, एक घने जंगल में एक चालाक
सारस खुशी-खुशी लोमड़ी के घर आया। जब खाना परोसा गया, तो लोमड़ी ने सारस के सामने एक चौड़ी और सपाट प्लेट में सूप रखा। सूप बहुत पतला था, और सारस अपनी लंबी चोंच से उसे पी नहीं पा रहा था। लेकिन लोमड़ी ने मज़े से अपनी जीभ से सारा सूप पी लिया। सारस समझ गया कि लोमड़ी उसे बेवकूफ बना रही है, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।